मुश्किल के दौरान सिर झुकाकर उसका सामना करें - रतन लाल डांगी



अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट 

रायपुर -  वरिष्ठ आईपीएस एवं राज्य पुलिस अकादमी चंदखुरी के निदेशक रतन लाल डांगी अपना कर्तव्य निभाते हुये भी समय - समय पर युवाओं को संदेश देते रहते हैं। इसी कड़ी में आज उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा करते हुये लोगों से मुश्किल के दौरान सिर झुकाकर उसका सामना करने की बात कही। उन्होंने कहा बचपन के दिनों की बात है जब स्कूल से गर्मी की छुट्टियाँ हो जाने पर खेतों में बकरियाँ चराने गये हुये थे। हमेशा की तरह ही एक दिन दोपहर के बाद जब थोड़ा तापमान कम हो जाने पर अपनी बकरियों को घर से बाहर चराने के लिये निकले थे। लगभग शाम चार - पांच बजे की बात है पश्चिम दिशा में जब क्षितिज पर काली पीली आंधी तूफ़ान के लक्षण दिखने लगे। सबको पता है की ज़्यादा तर रेगिस्तानी इलाके में आंधी-तूफ़ान बड़े भयंकर हो जाते हैं। वे इतने तेज़ होते हैं कि राह में आने वाली हर चीज़ को उड़ा सकते हैं। उस दिन भी लग रहा था कि ऐसा ही एक तूफ़ान आने वाला है , देखते देखते आंधी तूफान हमारी और बढ ही रहा था। हम दो बच्चे साथ में थे और घर भी दूर था इसलिये दौड़कर वापस नहीं जा सकते थे। बहुत डर भी लग रहा था कि अब क्या होगा ? हम दोनों ने अपने आपको बचाने की कोशिश शुरू कर दी थी। इसलिये मुझे अपनी दादी की कही गई बात याद थी जो अक्सर अपनी कहानी कहने के अंदाज में दैनिक जीवन के सबक बताया करती थी । उन्होंने एक बार बताया था की काली - पीली आंधी आने से घर से बाहर रहने से अपने आप को कैसे बचाना चाहिये ?  तूफ़ान को आते देख मेरा साथी एक पेड़ के तने के पीछे छुपने के लिये भागा। इसे देखकर मैंने जोर से पुकारकर कहा - पेड़ के नीचे मत छुपना यह बहुत ख़तरनाक है। दादी ने बताया था की बड़े-से-बड़े पेड़ भी आँधी-तूफ़ान में गिर पड़ते हैं। खुद को बचाने का सिर्फ़ एक तरीक़ा दादी ने  बताया था कि मुंह के बल ज़मीन पर लेट जाना चाहिये और हम दोनों ने ऐसा ही किया। कुछ समय बाद थोड़ा उजाला हो गया , आंधी तूफान गुजर गया तो देखा हम दोनों बच गये , क्योंकि हम दोनों बिना हिले-डुले ज़मीन पर लेटे हुये थे। जब तूफ़ान गुज़र गया , तो दोनों उठ खड़े हुये। यह अच्छा ही हुआ , क्योंकि जब तूफ़ान आया तो वह इतना तेज़ था कि आसपास के बड़े-बड़े पेड़ और मकान की छतें हवा में उड़ गई , लेकिन हम दोनों सुरक्षित थे। तब समझ आया की आंधी-तूफान की तेज़ी हमेशा ही ज़मीन से ऊपर ज़्यादा तेज़ होती है। इसीलिये ज़मीन पर इसका पूरा असर कभी नहीं पड़ता। लेकिन ऊंचे पेड़ इसकी पूरी ताक़त को झेलते हैं और इसीलिये तूफ़ानों के दौरान वे उखड़ जाते हैं। घास ज़मीन से ज़रा-सा ही ऊपर उठती है और इसलिये तूफ़ान का उस पर असर नहीं होता। जीवन में भी इसका सबक यह मिलता है कि मुश्किल के दौरान सिर झुकाकर उसका सामना करना चाहिये। यह कुदरत का एक सबक है , जो हमें ज़िन्दगी के तूफ़ानों से बचने की राह दिखाता है। ऐसे समय में सबसे सीधा तरीका है कि विनम्र बने रहें। साथ ही अपने बडो़ की बातों को भी ध्यान से सुनना और मानना चाहिये क्योंकि उनके पास जीवन का अनुभव रहता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post